हनुमान जी के जन्म की कहानी

 

हनुमान जी के जन्म की कहानी


वेदों और पुराणों के अनुसारपवन पुत्र हनुमान जी का जन्म चैत्र मंगलवार के ही दिन पूर्णिमा को हुआ था। इनके पिता का नाम वानरराज राजा केसरी थे। इनकी माता का नाम अंजनी थी।



पौराणिक कथाओ के अनुसार पुंजिकस्थली हनुमान जी की माता देवराज इन्द्र की सभा में एक अप्सरा थीं।

एक बार जब दुर्वासा ऋषि इन्द्र की सभा में उपस्थित थेतब अप्सरा पुंजिकस्थली बार-बार अंदर बाहर  जा रही थीं इससे गुस्सा होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें वानरी हो जाने का शाप दे दिया। 

पुंजिकस्थली ने क्षमा मांगीतो ऋर्षि ने इच्छानुसार रूप धारण करने का वर भी दिया। कुछ वर्षों बाद पुंजिकस्थली ने वानर श्रेष्ठविरज की पत्नी के गर्भ से वानरी रूप में जन्म लिया। उनका नाम अंजनी रखा गया विवाह योग्य होने पर पिता ने अपनी सुंदर पुत्री का विवाह महान पराक्रमी कपि शिरोमणी वानरराज केसरी से कर दिया। इस रूप में पुंजिकस्थली माताअंजनी कहलाईं।

               
एक बार घूमते हुए वानर राज केसरी प्रभास तीर्थ के निकट पहुंचे उन्होंने देखा कि बहुत से ऋषि वहां आए हुए हैं।

कुछ साधु किनारे पर आसन लगाकर पूजा अर्चना कर रहे थे।उसी समय वहां एक विशाल हाथी  गया और उसने ऋषियों को मारना प्रारंभ कर दिया।ऋषि भारद्वाज आसन पर शांत होकर बैठे थेवह दुष्ट हाथीउनकी ओर झपटा पास के पर्वत शिखर से केसरी ने हाथी को यूं उत्पात मचाते देखा तो उन्होंने बलपूर्वक उसके बड़े-बड़े दांत उखाड़ दिए और उसे मार डाला। हाथी के मारे जाने पर प्रसन्न होकर ऋर्षियों ने कहा, 'वर मांगो वानरराज।'  केसरी ने वरदान मांगाप्रभुइच्छानुसार रूप धारण करने वालापवन के समान पराक्रमी तथा रुद्र के समान पुत्र आप मुझे प्रदान करें। ऋषियों ने 'तथास्तुकहा और वो चले गए।



एक और कथा के अनुसार प्राचीन काल में समुद्रमंथन के उपरांत भगवान शिव जी के निवेदन पर असुरों से अमृत की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं की सहायता कर अमृत का पान देवताओं को कराया था।
परंतु भगवान विष्णु जी का दिव्य रूप मोहिनी देखकर महादेव कामातुर हो गएजिससे उनका वीर्यपात हो गया। इसी वीर्य को लेकर वायुदेव ने भगवान शिव जी के आदेश से वानर राज राजा केसरी की पत्नी देवी अंजना के गर्भ में स्थापित कर दिया। जिसके बाद इस देवी अंजनी के गर्भ से वानर रूप में स्वयं भगवान महादेव ने 11 वें रुद्र अवतार हनुमान जी के रूप में जन्म लिया। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान श्रीराम जी को अपने आराध्य मान उन्हीं की सेवा में समर्पित किया। कहा जाता समस्त देवताओं ने इनके बाल्यकाल में इन्हें अनेक प्रकार की शक्तियां प्रदान कर इन्हें शक्तिशाली बनाया था तो वहीं श्री राम द्वारा इन्हें अजर अमर रहने का वरदान प्राप्त हुआ था।



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https://youtu.be/n536ydEQFcA 

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