क्यों देवी सीता ने रावण की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा
जब सीता, वधू बनकर अयोध्या आयीं, तो उनका हार्दिक स्वागत हुआ। नयी वधू को, रसोईघर में ले जाया गया और परंपरानुसार, उनसे कोई मीठा पकवान बनाने को कहा गया।
उन्होंने प्रेमपूर्वक खीर बनाई और परिवार में, सबों के
थाली/पत्तल में वह परोसा गया। उसी समय हवा के एक झोंके से, घास का एक
तिनका उड़ कर आया और दशरथ की थाली में गिर गया।
सीता और दशरथ दोनों को इसका पता चल गया। सीता
ने एक गहरी दृष्टि से उसे देखा। वह तिनका तत्काल भस्म होकर, बिंदु-मात्र
रह गया।
दशरथ ने यह सब देख लिया और भोजन के उपरांत
सीता को अपने कक्ष में बुलाकर कहा कि तुममें दैवीय शक्ति है। तुम कभी शत्रु को भी
ऐसी दृष्टि से मत देखना।
इसी कारण
से, अशोक
वाटिका में, जब भी रावण, सीता के
पास आता था, तो वह, वहाँ
उपलब्ध एक तिनके की ओट लेकर, आँखें नीची किये, पतिव्रता
स्त्री की मर्यादा का पालन करती थी और रावण की ओर देखने से बचती थी, ताकि वह जल
कर राख न हो जाए।
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